Gajendra moksh in hindi mool | गजेंद्र मोक्ष मूल - शुकदेव जी द्वारा परीक्षित को कही गयी तीनों कथाएँ
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Gajendra moksh in hindi mool | गजेंद्र मोक्ष मूल - शुकदेव जी द्वारा परीक्षित को कही गयी तीनों कथाएँ |
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Gajendra moksh in hindi mool | गजेंद्र मोक्ष मूल - शुकदेव जी द्वारा परीक्षित को कही गयी तीनों कथाएँ
गजेंद्र मोक्ष विषय में दर्शकों द्वारा पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नो के उत्तर
Some common searches by viewers on Gajendra moksh
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gajendra moksh ke fayde / gajendra moksh ke labh
गजेंद्र मोक्ष पढ़ने के फायदे और इसे क्यों पढ़ते हैं
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र :जीवन के कठिन परिस्थितियों में भगवान विष्णु जी की सहायता प्राप्त करने हेतु इस पाठ को किया जाता है ।
गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत का नियमित पाठ करने से श्री विष्णु जी भक्त की सहायता अवश्य करते हैं
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र के लाभ - इसके जाप से कर्ज और पित्तर दोष शांत होता है।
इसका नित्य जाप करने से व्यक्ति के मुक्ति का मार्ग खुलता है और सभी संकट दूर होते हैं।
इसके जाप से व्यक्ति विकट संकट से मुक्ति प्राप्त करता है।
कर्ज मुक्ति के लिए इसका जाप करने से बड़े से बड़े प्रकार के ऋण से मुक्ति मिलती है।
ओं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ||
gajendra moksh lyrics - gajendra moksh in sanskrit - gajendra moksh sanskrit
गजेंद्र मोक्ष संस्कृत लिरिक्स
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम
योऽस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ||
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम
अविद्धदृक्साक्ष्युभयं तदीक्षते स आत्ममूलोऽवतु मां परात्परः ||
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु
तमस्तदासीद्गहनं गभीरं यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः ||
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ||
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं विमुक्तसङ्गा मुनयः सुसाधवः
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भूतात्मभूताः सुहृदः स मे गतिः ||
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा न नामरूपे गुणदोष एव वा
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति ||
तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे ||
नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ||
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ||
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ||
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः ||
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे
असता च्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः ||
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय निष्कारणायाद्भुतकारणाय
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय नमोऽपवर्गाय परायणाय ||
गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय
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नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ||
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ||
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसङ्गविवर्जिताय
मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ||
यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति
किं चाशिषो रात्यपि देहमव्ययं करोतु मेऽदभ्रदयो विमोक्षणम ||
एकान्तिनो यस्य न कञ्चनार्थं वाञ्छन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमङ्गलं गायन्त आनन्दसमुद्रमग्नाः ||
तमक्षरं ब्रह्म परं परेशमव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम
अतीन्द्रियं सूक्ष्ममिवातिदूरमनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ||
यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ||
यथार्चिषोऽग्नेः सवितुर्गभस्तयो निर्यान्ति संयान्त्यसकृत्स्वरोचिषः
तथा यतोऽयं गुणसम्प्रवाहो बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ||
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यङ्न स्त्री न षण्ढो न पुमान्न जन्तुः
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन्निषेधशेषो जयतादशेषः ||
जिजीविषे नाहमिहामुया किमन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम ||
सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोऽस्मि परं पदम ||
योगरन्धितकर्माणो हृदि योगविभाविते
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम ||
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ||
नायं वेद स्वमात्मानं यच्छक्त्याहंधिया हतम
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम ||
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स्वर - भास्कर पंडित
Voice By - Bhaskar Pandit
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"लगाइये आस्था की डुबकी "
~ मंत्र सरोवर ~
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