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शिव पुराण (Shiv Puran) में भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। इस पुराण का संबंध शैव मत से माना जाता है। इसमें भगवान शिव को प्रसन्न करने की पूजा विधियों और ज्ञान से भरे आख्यान भी सम्मिलित हैं। हिंदू धर्म में भगवान शिव त्रिदेवों में से एक हैं और इन्हें संहार का देवता भी माना जाता है। भगवान शिव को महेश, महाकाल, नीलकंठ, रुद्र आदि नामों से भी पुकारा जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव महान योगी थे और इसीलिये उन्हें आदियोगी की संज्ञा भी दी जाती है। हिंदू शास्त्रों में भगवान शिव को एक ऐसे देवता के रुप में वर्णित किया गया है जो बहुत दयालु और भोले हैं और भक्तों की एक सच्ची पुकार पर प्रसन्न हो जाते हैं। हालांकि जब भगवान शिव क्रोध में आते हैं तो सारी सृष्टि कांपने लगती है।
शिव पुराण
भगवान शिव की महिमा का गुणगान कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों में देखने को मिलता है लेकिन शिव पुराण में उनके जीवन पर गहराई से प्रकाश डाला गया है। शिव पुराण में उनके जीवन, विवाह, संतान, रहन-सहन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। शिव पुराण में 6 खंड और 24000 श्लोक हैं। इसके खंडों के नाम नीचे दिये गये हैं।
1. विद्येश्वर संहिता 2. रुद्र संहिता 3. कोटिरुद्र संहिता 4. उमा संहिता 5. कैलास संहिता 6. वायु संहिता
1. विद्येश्वर संहिता
शिव पुराण की इस संहिता में भगवान शिव से जुड़े ओंकार, शिवलिंग की पूजा और दान का महत्व बताया गया है। भगवान शिव के आंसू से बने रुद्राक्ष और उनकी भस्म के बारे में भी इस संहिता में जानकारी दी गई है। इसमें बताया गया है कि ऐसे रुद्राक्ष को धारण नहीं करना चाहिये जिसमें कीड़े लगे हों या जो खंडित हो। ऐसी ही कई और जानकारियां भी इस सहिंता में हैं।
2. रुद्र संहिता
शिव पुराण की यह महत्वपूर्ण संहिता है इसी संहिता के सृष्टि खण्ड में भगवान शिव को आदि शक्ति का कारण बताया गया है और बताया गया है कि विष्णु और ब्रह्मा की उत्पत्ति भी शिव से ही हुई। इसके साथ ही इस संहिता में भोलेनाथ के जीवन और उनके चरित्र के बारे में भी जानकारी दी गई है। इस संहिता में पार्वती विवाह, कार्तिकेय और गणेश का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा से जुड़ी कथा आदि का भी उल्लेख है। भगवान शिव की पूजा विधि का वर्णन भी इसी संहिता में मिलता है।
3. कोटीरुद्र संहिता
इस संहिता में शिव के अवतारों का जिक्र मिलता है। भगवान शिव ने समय-समय पर सृष्टि की रक्षा करने के लिये अवतार लिये हैं। उनके मुख्य अवतारों में हैं- हनुमान जी, ऋषभदेव और श्वेत मुख। इस संहिता में भगवान शिव की आठ मूर्तियों का उल्लेख भी हैं। इन मूर्तियों में भूमि, पवन, क्षेत्रज, जल, अग्नि, सूर्य और चंद्र को अधिष्ठित माना जाता है। यह संहिता इसलिये भी प्रसिद्ध है क्योंकि इसी में भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर रुप धारण करने की रोचक कथा है।
4. उमा संहिता
इस संहिता में माँ पार्वती के चरित्र के बारे में उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती भगवान शिव का आंशिक रुप हैं। इसके साथ ही इस संहिता में दान, तप के महत्व को वर्णित किया गया है। इस पुराण में पाप के प्रकार और उनसे मिलने वाले नरकों की जानकारी भी दी गई है। आप पाप कर्म करने के बाद कैसे उसका प्रायश्चित करक सकते हैं इसका उल्लेख भी इस संहिता में मिलता है।
5. कैलाश संहिता
कैलाश संहिता में भगवान शिव की पूजा करने की सम्पूर्ण विधि मिलती है। इसके साथ ही योग के बारे में भी इसमें विस्तार से बताया गया है। इसके साथ ही शब्द ब्रह्मा कहे जाने वाले ओंकार के महत्व की भी इस संहिता में विस्तार से चर्चा है। इसी संहिता में गायत्री जप के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है।
6. वायु संहिता
वायु संहिता दो भागों में विभाजित है-पूर्व और उत्तर। इस संहिता में शिव ध्यान की विस्तार से चर्चा की गई है साथ ही योग और मोक्ष प्राप्त करने के लिये भगवान शिव की प्रधानता की भी इस संहिता में उल्लेख मिलता है। भगवान महादेव के सगुण और निर्गुण रुप का भी इस संहिता में उल्लेख है।
शिव पुराण पढ़ने के लाभ
भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है और उनकी कृपा मात्र से भक्तों के कई कष्टों का निवारण हो जाता है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि शिव भगवान की महिमा से भरे शिव पुराण को पढ़ने से भक्तों को क्या लाभ प्राप्त होते हैं।
शिव पुराण का पाठ करने से व्यक्ति को भय से मुक्ति मिलती है।
इस पुराण का पाठ करने से व्यक्ति को भोग और मोक्ष दोनों की ही प्राप्ति होती है।
यदि आप अपने पापों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो शिव पुराण का पाठ सबसे ज्यादा लाभकारी है।
सावन के महीने में शिव पुराण का पाठ करने से जीवन के सब दुखों से मुक्ति मिलती है।
शिव पुराण का पाठ करने से इंसान को मृत्यु का भय नहीं सताता और मृत्यु के बाद ऐसे व्यक्ति को शिव के गण लेने आते हैं।
मानसिक शांति की प्राप्ति के लिये भी शिव पुराण का पाठ किया जाता है।
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